Friday, January 29, 2016

अगर सांवली रात खूबसूरत है तो सांवला चेहरा कैसे बुरा हो सकता हैं ?



अगर सांवली रात खूबसूरत है तो सांवला चेहरा कैसे बुरा  हो सकता हैं ? 

                   

इति-

काफी समय पहले नंदिता दास का यह पोस्टर फेसबुक में दिखा था। 'Stay Unfair, Stay Beautiful' बहुत खूबसूरत लगता है यह शब्द। गोरेपन की चाहत के भ्रम को तोड़ता और सांवलेपन से प्यार करना सिखाता है यह शब्द। अपने सांवलेपन को लेकर अफ़सोस करने वाली तमाम लड़कियों में आत्मविश्वास भरता हुआ दिखता है यह शब्द।

कभी मुझे भी मेरे इस सांवले रंग से चिढ़ होती थी, इसका कारण था सांवले रंग पर बचपन से लेकर आजतक लोगों से सुनी बातें। लोग सांवले रंग को लेकर हमारे ऊपर बेचारगी प्रकट करने में भी पीछे नहीं रहते। हमें गोरे होने के लिए ऐसी सलाह देते जैसे वे हमारे सबसे बड़े हितैषी हो।

छोटी थी उस वक़्त अक्ल भी नहीं थी। समाज में गोरे और सांवले रंग के बीच के दोहरे व्यवहार का मेरे दिमाग में भी असर पड़ता था। कई बार मैं माँ से बोलती भी थी  'माँ तुम तो गोरी हो पर मुझे सांवला क्यों जन्म दिया।' कई बार आईने में अपना चेहरा देखकर उदास भी हो जाती थी।

कुछ वैसे लोग जो मेरी माँ से मिले थे,  मगर मेरे पिता जी से नहीं, मुझसे कहते थे 'तुम काली कैसे हो गई जबकि आंटी तो गोरी हैं'। मुझे बुरा लगता और मैं अपने बचाव में बस इतना ही कहती 'क्या है कि मैं अपने पापा पर गई हूँ।'

                    

बाद में जब अक्ल आई तब अपनी ही सोच पर हंसी आने लगी। एक गोरे रंग को ही खूबसूरती का पैमाना बना बैठी थी मैं। जबसे उस गोरे रंग के भ्रम से निकली हूँ मुझे अपने सांवले रंग से प्यार हो गया है। अब अगर कोई फेयरनेस क्रीम लगाने की सलाह देता है, तो मुझे बहुत हंसी आती है।

अभी हाल में भी एक सज्जन मेरे सांवले रंग का मज़ाक बना रहे थे। उनका कहना था कि काले कपड़े की जगह मुझे ही खड़ा कर देना चाहिये फिर उस काले कपड़े की जरूरत ही नहीं होगी। छोटे में यह बात सुनी होती तो शायद उस वक़्त खुद को बहुत अपमानित महसूस करती, क्या पता मेरी आँखों में आंसू भी आ जाते। पर अब नहीं, अब आंसू की जगह हंसी आती है। हंसी क्यों, यह बताने की जरूरत नहीं समझती, इतना तो आप समझ ही चूके होंगे।

खैर, गोरे रंग को खूबसूरती का पैमाना मानने वाले आज भी सांवले रंग को नीचा बताने में पीछे नहीं रहते। इसका परिणाम, कई सांवला लड़कियां अपना पूरा आत्मविश्वास खो देती हैं, अपने अंदर के तमाम गुणों को भूल कर सांवलेपन के अफ़सोस और शर्म में जीने लगती हैं और लग जाती है खुद को गोरे बनाने की जुगत में। लेकिन शायद वे यह नहीं समझती कि ऐसा करके वे खुद उस तथाकथित समाज के भ्रम में फंसकर सांवलेपन का मज़ाक उड़ाने में लग जाती है।


फिल्म दिलवाले में काजोल की वापसी के साथ उनका एक नया रूप भी देखने को मिला। सांवली सी काजोल अब गोरेपन के आवरण के साथ दिखी। जाहिर ही बात है, उन्होंने सांवले से गोरे होने के लिए तमाम महंगे ट्रीटमेंट का सहारा लिया होगा। खैर, यह उनका व्यक्तिगत चुनाव होगा, मगर उनके इस चुनाव के बाद आज वह हम सांवली लड़कियों के लिए सिर्फ एक कलाकर और एक अभिनेत्री भर ही रह सकीं, जबकि नंदिता दास आज तमाम सांवली लड़कियों की प्यार हैं। काजोल गोरेपन की चाहत के साथ तो आपने खुद ही सांवलेपन का मज़ाक उड़ाया है।

बस इतना ही कहना चाहती हूँ कि समाज से सांवलेपन के दोयम दर्जे के व्यवहार को ख़त्म करने के लिए सबसे पहले हमें खुद अपने सांवले रंग से प्यार करना सीखना होगा।

अगर सांवली रात खूबसूरत है तो सांवला चेहरा कैसे बुरा हो सकता हैं ?


सांवली लड़कियों कभी अपने सांवले रंग को लेकर उदास मत होना। बहुत खूबसूरत है यह सांवला रंग। कहने दो दुनिया को जो कहना है। तुम्हारे सांवले रंग के कारण तुमसे कोई शादी करने से मना करता है तो खुश हो, क्योंकि ऐसे इंसान की हमें जरुरत भी नहीं। अगर तुम्हारे सावले रंग के लिए तुम्हारे प्रति कोई बेचारगी प्रकट करता है तो करने दो, क्योंकि तुम्हारा रंग नहीं बल्कि उसकी सोच बदसूरत है। उन तमाम फेयरनेस क्रीम को कह दो नहीं जरूरत हैं हमें तुम्हारी।

और अंत में बहुत-बहुत शुक्रिया नंदिता दास तुम्हारे इस शब्द के लिए stay unfair, stay beautiful and Dark is beautiful.


साभार - स्त्रीकाल 




Thursday, February 26, 2015

सामाजिक कुण्ठाएं पनपाती हैं प्यार में हिंसा



      सामाजिक कुण्ठाएं पनपाती हैं प्यार में हिंसा

प्यार का प्रतीक बन चूके वैलेनटाइन डे के दिन हर बार की तरह इस बार भी चारों ओर लाल गुलाब ने अपनी छटा बिखेर रखी थी। मगर उन सबके बीच इस बार कुछ लोग काले गुलाब हाथों में लिए भी देखे गए। जाहिर सी भी बात है, लोगों के मन में यह सवाल उठेगा ही कि प्यार के मौसम में इस काले गुलाब का क्या मतलब ?

दरअसल, यह एसिड अटैक कैम्पेनर्स के द्वाराब्लैक रोज़नाम से चलाए जा रहे कैम्पेन का कमाल था इसके जरिए अपने प्यार के इज़हार की एक नई शुरूआत की गई है। इसमें काले गुलाब के जरिए प्यार को एक अलग तरह से पेश किया जा रहा है। समाज में हर इंसान की अपनी पसंद और नापसंद होती है। जरूरी नहीं कि आप जिसे पसंद करे सामने वाला भी आपको उसी रूप में चाहे। सबको अपना जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता होती है। इसलिए अगर सामने वाला आपके प्यार को नहीं अपना रहा तो आक्रोशित होने की जगह आप उसे एक काला गुलाब देकर अपने प्यार का इज़हार किजिए। काले गुलाब के साथ एक ख़त के जरीए अपनी बात उसतक पहंुचाइए। 

हमारे समाज में लगभग 70 से 80 प्रतिशत एसिड अटैक की घटनाएं एकतरफा प्यार के परिणाम के रूप में सामने आई है। और इस तरह की घटना में हर बार लड़की को ही अटैक का शिकार होना पड़ता है। इन सबको देखते हुए पिछले साल एसिड अटैक कैम्पेनर्स के द्वारा ब्लैक रोज़ कैम्पेन की शुरूआत की गई। उद्देश्य यह भी था कि इस अटैक से पीडि़त व्यक्ति के मन में पल-पल पलने वाली पीड़ाओं के दंश को बाहर निकाल कर उसे एक  सुकून  भरा रचनात्मक प्रतिरोध की अभिव्यक्ति का रास्ता दिया जा सके। इसके तहत कई एसिड अटैक पीडि़ताओं ने ख़त के जरिए अपने अंदर के आक्रोश और सवालों को बाहर निकालने की कोशिश की जिसे एक काले गुलाब के साथ उस व्यक्ति को भेजा जिसने उस पर हमला किया था।

उन्हीं खतों में एक ख़त लक्ष्मी ने भी लिखा हैं -


आपने मुझे एकतरफा प्यार किया, दावे किए और उसके बाद क्या किया - तेज़ाब डाल दिया। सिर्फ ये सोचकर कि मेरा चेहरा खराब हो जाए, मेरी जिन्दगी बर्बाद हो जाए। मगर आज भी मेरी जिन्दगी में एक बहुत अच्छा इंसान है। आप मेरी जिन्दगी क्या बर्बाद करेगें। मैं तो अब और स्वतंत्र रूप से अपनी बात रखने लगी हूं।"

लक्ष्मी को 2005 में एकतरफा प्यार का शिकार होना पड़ा था। इस अटैक ने लक्ष्मी की सारी सुंदरता को तो नष्ट किया ही उसके जीवन की सारी रौशनी भी छीन ली। मगर लक्ष्मी ने बिलकुल सक्ते की हालत में रहने के बाद अपने को संभाला और जिन्दगी में आई इस भयावह हादसे को एक मजबूत इरादे में ढालने की शुरूआत की। इसके साथ ही लक्ष्मी के जीवन में उसे एक सच्चा प्यार करने वाला इंसान भी मिला। अगर किसी एक इंसान के प्यार ने उसके जीवन के रंगों को छीना तो एक दूसरे इंसान के प्यार ने उसके जीवन को एक नया रंग दिया। स्टाप एसिड अटैक कैम्पेन के संस्थापक आलोक दीक्षित और लक्ष्मी की जोड़़ी आज समाज की एक बेहद खुबसूरत जोड़ी के रूप में पहचानी जाती है। आज दोनेां मिलकर एसिड अटैक पीडि़तों के लिए लड़ाई लड़ रहे।




अभी कुछ ही महीने पहले दिल्ली में एक महिला डाॅक्टर पर भी एकतरफा प्यार के कारण एसिड का हमला किया गया था। डाॅक्टर को चाहने वाला उसका आशिक उसकी किसी और से शादी तय हो जाने को बर्दाश्त नहीं कर सका। उसी गुस्से में उसने डाॅक्टर पर एसिड हमले की घटना को अंजाम दे दिया ताकि वह उसकी नहीं तो किसी और की भी नहीं हो सके। 

इस तरह की घटना को जघन्य अपराध की श्रेणी में ही रखा जाएगा। ऐसी घटनाएं पीडि़ता के अस्तिव से ज्यादा उसके आत्मबल पर हमला करती है। मगर लाख विरोध और कानूनी प्रावधानों के बाद भी महिलाओं के खिलाफ होने वाली इस हिंसा पर रोक लगाना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में जरूरी है रोग की जड़ को पहचानना ताकि समाज में पल रही इस तरह की विकृति को जड़ मूल से मिटाया जा सके। 

ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के पीछे मानसिक और सामाजिक दोनों ही तरह के तत्वों का बहुत बड़ा हाथ होता है। मनोचिकित्सकों की माने तो इन घटनाओं के अलग-अलग कारण हो सकते है। समय, परिस्थति, परिवेश के अनुसार इनके कारणों में भी विभिन्नता पाई जा सकती हैं। किसी एक निश्चित कारण को मान लेना संभव नही। लेकिन मानसिक असंतुलन इसके प्रमुख कारणों में से एक है। 

मनोचिकित्सकों के अनुसार कई बार लोग किसी विशेष मानसिक परिस्थिति के घेरे में जाते हैं जो उन्हें इस तरह के परिणाम के लिए बाध्य करता है। इनमें से एक मानसिक परिस्थितडील्यूशन आॅफ लव" होता है। डिल्यूशन आॅफ लव एक ऐसी मानसिक परिस्थति होती है, जिसमें व्यक्ति को ये विश्वास हो जाता है कि वो सामने वाले को जिस रूप में प्यार करता है सामने वाला भी उसे उसी रूप में प्यार कर रहा है। जबकि सच्चाई बिलकुल भिन्न होती है। वह एकतरफा प्यार में डूबा रहता है। 

डिल्यूशन आॅफ लव की परिस्थिति में इंसान सामने वाले के लिए इस हद तक अपने को बंधा हुआ पाता है कि उसके अलावा उसके मन में और कोई बात होती ही नहीं है। लेकिन जब उसे सामने वाले से कोई अनुकूल संकेत या इज़हार नहीं मिलता तो वह बौखला उठता हैं। फिर तो वो उसके अस्तित्व, उसकी पहचान तक मिटा देने की हैवानीयत पर उतर आता है। 

साइकोपैथीक डीसआर्डरभी इसका एक कारण माना जा सकता है। इसके अनुसार व्यक्ति के भीतर कई स्तर की नकरात्मक सोच अपना घर बना लेती हंै। किसी भी गलत काम को अंजाम देने से लेकर सामने वाले के अस्तित्व तक को मिटा देने के एक अमानवीय भाव से भर उठना उसके व्यक्तिव में शामिल हो जाता है। 

मगर किसी भी तरह की मानसिक परिस्थिति कहीं कहीं सामाजिक परिस्थिति की ही अभिव्यक्ति होती है। स्वभावतः इन घटनाओं में सामाजिक परिस्थिति का एक बहुत बड़ा हाथ होता है। शिक्षा का स्तर, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश, आस-पास का वातावरण ही किसी व्यक्ति की मानसिकता के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है।

इन सबसे अलग एक और पहलू भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में एसिड अटैक की घटना के कारण बनते है। वो है हमारा पाॅपुलर सिनेमा। दरअसल हमारे भारतीय सिनेमा में अक्सर यह दिखाया जाता है कि एक लड़का किसी लड़की को पटाने की बहुत कोशिश करता है। पहले तो लड़की थोड़े नख़रे दिखाती हैं मगर लड़के के लाख कोशिशों और मिन्नतों के बाद लड़की अंत में मान जाती है। एक हैप्पी एंडिग। यानि लड़की तो अंत में पटनी ही है। यह है हमारे हिन्दी सिनेमा का निहितार्थ। हालांकि अब फिल्मों में कुछ बदलाव आए हैं मगर 90 के दशकों में बनी अधिकांश फिल्मों में इस तरह की छाप ज्यादा देेखने को मिलती थी। हमारे समाज में युवाओं को अगर सबसे ज्यादा कोई माध्यम प्रभावित करता हैं तो वह है हमारा फिल्म जगत। फिल्म को देखकर युवाओं के दिमाग में ये बात पैठ जाती है कि अंत में लड़की को उसे तो हां कहनी ही है। मगर वो फिल्मी दुनिया और वास्तविक दुनिया के बीच के अंतर को भूल जाता है। 


और अंत में आती है मर्दो के वर्चस्व वाली इस समाज की बनावट। सैकड़ो साल से चली आ रही इस समाज की पुरूषवादी सोच की जड़ें काफी गहरी हैं। समाज का अधिकांश पुरूष प्रछन्न रूप से प्रायः इसी अंहकारी सोच से लैश रहता है। और प्यार के व्यापार में तो यह प्रायः अपनी पूरी आक्रामकता के साथ प्रकट हो जाती है। प्यार में डूबा कई पुरुष  यह कतई बर्दास्त नहीं कर पाता कि उसकी प्रेमिका उसके प्यार की तौहीनी करने की जुर्रत करे। और जब ऐसा होता है तो उसे सीधे अपनी मर्दानगी पर चोट पहुंचने सा लगता हैं। फिर क्या, उसके प्यार की सारी कोमल भावनाओं पर मर्दानगी का अमानवीय अंहकार हावी हो जाता है। वो क्रूरता की सारी हदें तोड़ देने पर अमादा हो जाता है। 'जब मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं' इस सोच के तहत वह प्रेमिका के वजूद को ही मिटा देने की खातिर कुचक्र में लग जाता हैं।
यह एसिड अटैक उनमें से सबसे विकृत कारवाई है। कई बार यह सोच अपनी प्रेमिका की हत्या भी करने के लिए प्रेरित कर बैठती है।

उत्तर प्रदेश में पिछले साल एक ऐसी ही एक घटना को अंजाम दिया गया था। काॅलेज के दिनों में एक लड़का लड़की के बीच काफी नजदीकीयां गई थी। लड़की की तरफ से वो नजदीकी सिर्फ एक अच्छी दोस्ती के रूप में थी जबकि लड़का उसे प्यार समझ बैठा था। यहांडील्यूशन आॅफ लवकी स्थिति  पैदा हो गई थी। उस लड़की की शादी कही और तय हो जाने पर लड़का बौखला उठा। इसी बौखलाहट में उसने सीधे ही मण्डप में पहुंच कर लड़की को गोली मार दी। 

चुंकि एसिड अटैक या हत्या की ऐसी कोई भी घटना मानसिक और सामाजिक परिस्थति की उपज होती है इस कारण यह बहुत जरूरी है कि उस इंसान के मनोभावों को सुनने और समझने की भी कोई कोशिश हो। मनोचिकित्सकों के मुताबिक उसकी कांउनसलिंग की जाए। एसिड अटैक के खिलाफ तमाम कानून बनने के बाद भी इस तरह के जघन्य अपराध को प्रभावी ढ़ंग से तब तक नहीं रोका जा सकता जबतक कि सामाजिक रूप से इसके लिए कोई अभियान या आंदोलन को अंजाम ना दिया जाए।

स्टाप एसिड कैम्पेन की तरफ से चलाया जा रहा ब्लैक रोज़ अभियान इसी दिशा में उठाया गया एक बेहद सराहनीय कदम है। अपनी दिल की बात ख़त के जरीए लिख कर मन हल्का करने से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता हैं। इसके कई सकरात्मक संकेत भी उभर कर सामने आए हैं। लक्ष्मी ने बताया कि हमें कई ऐसे भी ख़त मिले हैं जिसमें लिखा हुआ हैं कि मैं किसी लड़की को बहुत प्यार करता हूं मगर वो मेरे प्यार को नहीं समझ रही। मैं उसे बर्बाद कर देना चाहता हूं। 

लक्ष्मी का कहना है कि हमारी कोशिश ऐसे लोगों से तुरंत संपर्क साधने की होती है। हम उनकी बातें सुनते हैं, उनके प्यार के कोमल तंतुओं को सहलाते, सहराते है। और फिर लड़की के पक्ष को भी बड़े ही संतुलित तरीके से उन्हें समझने को राजी करते हैं।  इस तरह हम उन लोगों की काउंसलिंग कर रहेे होते है जो अपने मन की बात किसी से साझा नहीं कर पाने की वजह से कुण्ठाओं और आक्रोश को दबाए बैठे रहते हैं। इस प्रयास में हमने कई सफलताएं भी हासिल की हैं।

असली प्यार तो वो हैं जहां प्यार की खुशी में ही अपनी खुशी भी हो। अगर हम किसी को बेइंतहा प्यार करते हैं तो उसे चोट नहीं पहंुचा सकते। गुस्सा तो सबको आता है मगर उस गुस्से को कैसे निकाला जाए ये जरूरी हैं। एक ख़त के जरिए अपने मन के अंर्तद्वदों को बाहर निकालना एक बहुत ही अच्छा प्रयास है। 

-इति