Thursday, January 5, 2012

वंचित बेटियों के पक्ष में




                                                   वंचित बेटियों के पक्ष में


कभी-कभी कोई मामूली समाचार भी दिल को कैसे हिला देता है, इसकी बानगी है एक दैनिक में छपा यह समाचार: ‘तीन बेटों ने अपने जीवित मां-बाप को मृत घोषित करवा कर उनकी करोड़ों की संपत्ति हड़प ली। समाचार में आगे बताया गया है कि पीडि़त बाप द्वारा इस साजिश  की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाने से नाराज बेटों द्वारा बाप को जान से मारने की धमकी दी जा रही है। अपनी जान बचाने के लिए इन दिनों बाप दिल्ली में रह रही अपनी पुत्री के यहां शरण लिये हुए है।
    इस समाचार में वैसे देखा जाये तो कोई बहुत चैकाने वाली बात नहीं है। इस समाज में संपत्ति के लिए बेटों द्वारा अपने बापों अथवा मांओं को यातना  देना कोई नयी बात नहीं रह गयी है। बेटों द्वारा यह घिनौनी हरकत इस बात के बावजूद की जाती है कि मां-बाप की संपत्ति अंततः उन्हें ही मिलने वाली है। बेटियां लाख सर पटक लें, अपने मां-बाप की आंखो की पुतलियां समझी जाने के बावजूद वे अपने मायके की संपत्ति में हिस्सा बंटाने के काबिल आज भी नहीं समझी जाती। जिनके सिर्फ बेटियां हैं मैं उन मां-बाप की बात नहीं करतीं। उन्हें  तो अपनी संपत्ति बेटियों के हवाले करनी ही पड़ती है। हांलाकि मैं दावे के साथ कहना चाहूंगी  कि अगर बिन बेटों वाले मां-बाप के दिल पर हाथ रख कर देखा जाये तो अपनी संपत्ति बेटियों को लिखते वक्त यह हूक उन्हें भी जरूर उठती होगी कि ‘काश  आज उनके भी बेटे हुए होते।’ अपवाद हो सकते हैं मगर मैं बात इस सामंती समाज की  सामान्य सोच या मानसिकता की बात कर रही हूँ।
लेकिन इस गलीज चलन या मानसिकता के बावजूद बेटियों का बर्ताव  कैसा रहता है इस बात पर बहस कम ही होती है। अब ऊपर वर्णित इस घटना को ही लीजिये। बाप ने अपने तीन बेटों द्वारा मार दिये जाने के भय से यदि अपनी पुत्री के यहां शरण ले रखी है तो जाहिर है यह बेटी के प्रति उसके अपने असीम विश्वाश  का प्रतीक है। उस बेटी के प्रति जिसे उसने अपनी पैतृक संपत्ति में से छदाम भर भी देने की न सोची होगी! कैसा है यह रिश्ता ? वंश  और संपत्ति का वारिश  तो घोषित करो पुत्रों को और जब क्रूर पुत्र जान लेने पर तुल जाये तो सबसे सुरक्षित शरण स्थली अपनी उन्हीं बेटियों की छाह तले पाओ जो संपत्ति से वंचित किये जाने की स्वाभाविक पात्र समझी जाती हैं।
मुझे इस घटना को लेकर कोई लंबी-चैड़ी बहस छेड़ने की जिद नहीं हैं। मुझे तो बस इस दिल दहला देने वाली घटना के बहाने उन असंख्य मां-बापों के दिलों को टटोलना है जो आज भी बेटियों को अपनी संपत्ति से वंचित रखने की गलीज मानसिकता में ही जी रहे हैं। क्या यह घटना उन्हें सबक नहीं देती कि हर हालत में भरपूर सुरक्षा का अहसास दिलाने वाली अपनी बेटियों को भी अब आगे आप अपनी संपत्ति में  बराबर की हिस्सेदार बनाने की पहल करें। मैं कानून की बात नहीं करती मानसिकता की बात कर रही हूं। कानून तो है कि भ्रूण हत्या अपराध है मगर आज भी अनगिनत भ्रूण हत्याएं हो रही है  सिर्फ इस मानसिकता के कारण कि उनमें सांस ले रहा जीव बालिका हैं। समाज में क्रांति कानून नहीं मानसिकता लाती है।
बेटियों को अपनी पैतृक संपत्ति में स्वाभाविक हिस्सेदार बनाने की मानसिकता से समाज में कोई बहुत बड़ी क्रांति नहीं होने वाली है। मगर यह उन तमाम बेटियों के उस अपार निश्छल प्यार की वाजिब कीमत देने का एक तरीका तो हो ही सकता है जिसे वे अपने मां-बाप द्वारा संपत्ति से वंचित किये जाने के बाद भी उन पर लुटाने को तैयार बैठी रहती है । इस युगांतकारी पहल की उम्मीद कम से कम उस बाप से तो की ही जानी चाहिये जो अपने क्रूर बेटों के हाथों मारे जाने के भय से अभी दिल्ली में अपनी बेटी के वहां शरण लिये हुए है।

4 comments:

  1. बहुत बेहतरीन....स्पष्ट शब्दों में कहूं तो बिलकुल एक अनुभवी लेखिका का सा एहसास होता है। जैसे कोई नियमित स्तंभकार हो। इसमें तुम्हारे विचार बिल्कुल दिल से निकले हुए लगते हैं।

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  2. इतनी तारीफ की उम्मीद नहीं थी....... मेरी तो बस एक कोशिश है अपने विचारो को सही शब्दों के ज़रिये जाहिर करने की.... तुमने इसे इतना सराहा इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया......और जहा तक रही बात बेटियों के साथ ऐसे व्यवहार कि तो मेरे माता-पिता की भी हम तीन बेटियां ही है..... और उन्होंने हमें कभी भी किसी से कम नहीं समझा.......मगर चुकी मेरी पढाई एक सरकारी स्कूल से हुई है जहाँ मुख्यतः निम्न या मध्यम वर्ग के ओग पढ़ते है. .........तो मैंने इन चीजों को काफी करीब से देखा है........ किस तरह कई घरो में लड़कियों को भाई के तुलना में तुच्छ समझा जाता है......

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  3. :-]
    vry nice iti ...jis bare mai tu likhne ko kehri thi...main to wo dhund ri thi...but dis one is much btr den dat...dear...wo wala b likhna...

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  4. Well one of my friend recommend this page, i like your article but i dont find anything new in it. Same agenda. We all know many thing wrong in our daily life, but we people still quite. Lots of corruption, black money, polictics etc. These days we have dont any issue from the outsider, problem in our internal infrastructure.
    Well thanx n keep writing !!!
    Have a gud day :D

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