Thursday, December 29, 2011

मोबाइल कंपनियों की ‘डकैती’





                     मोबाइल कंपनियों की ‘डकैती’

पिछले दिनों जब मैं छुट्टियों में घर गयी थी तो पापा को कुछ अधिक ही तनाव और चिड़चिड़ेपन में पायी। मेरे पापा एक कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता  हैं और घर चलाने के लिए फ्रीलांसिंग करते हैं। सुना है, उनके पापा की भी ठीक यही स्थिति थी। इस नाते हमलोगों ने होश  संभालने के बाद से पापा को हमेशा ही पैसों की तंगी और उसके दबाव में रहते देखा है।
    मगर इस बार का उनका तनाव और चिड़चिड़ापन कुछ अलग ही किस्म का था। दरअसल, वह अपने मोबाइल के चलते भारी मुसीबत में हैं। उन्होंने अपने मोबाइल सेट में जिस कंपनी का सिमकार्ड ले रखा है, वह कंपनी इन दिनों, उन्हीं के शब्दों में, सीधे-सीधे ‘डकैती’ पर उतर आयी है। वह जब भी बैलेंस खत्म होने के बाद रिचार्ज  करवाते हैं तो कंपनी हर बार बिना बताये उसमें से एक खास रकम ‘डकार’ लेती है। शिकायत  दर्ज करवाने के लिए कस्टमर केयर पर दषियों बार फोन लगाने के बाद यदि बात होती भी है तो लाख प्रतिवाद करने के बावजूद उधर से भारी विनम्रता से यही जवाब मिलता है - ‘सर, आपने फलां पैक के लिए क्लिक किया था इसलिए पैसा कटा है। अगर आपको आगे नहीं चाहिये तो इसे हटा देंगे। कटा हुआ पैसा आप लाख सर धुन लें, वापस नहीं होगा।
लेकिन, उसके बाद दुबारा फिर रिचार्ज करवाने पर वहीं किस्सा फिर चालू। यानी कुत्ते की दुम टेढी की टेढ़ी। इसी कंपनी का सिम कार्ड ले रखने वाले और लोगों से बात करने पर पता चला कि वे भी प्रायः कंपनी की इस ‘डकैती’ के शिकार हैं। यानी इस देश  में एक नयी तरह की डकैती खुलेआम चल पड़ी  है जिसके शिकार संभवतः लाखों करोड़ों लोग प्रायः रोज रहे हैं। मेरे पापा उन्हीं में से एक हैं। एक तो वे वैसे ही भारी आर्थिक तंगी के चलते जरूरत से भी कम मोबाइल का इस्तेमाल करने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। ऐसे में यदि कंपनी उन जैसे लोगों का पैसा दिनदहाडे़ डकार जाये तो उनके आक्रोश  की तीव्रता को सहज ही समझा जा सकता है।
    वामपंथी कार्यकत्र्ता होने के नाते पापा वैसे ही इस सरकार की नीतियों पर चोट करते रहते हैं, इस ‘डकैती’ के शिकार होने के बाद से तो वह जैसे सरकार की धज्जियां उड़ाने पर ही तुल गये हैं। उनका कहना है कि सरकार ने जब से इस देश  को ‘बाजार की शक्तियों’ के हवाले कर दिया है, तभी से यह देश  और देश  के करोड़ों उपभोक्ता शक्तिशाली कंपनियों के जबरदस्त  लूट के शिकार  बन गये हैं। बाजार के नियमों का हवाला देकर सरकार धीरे-धीरे उन कंपनियों पर से अपने नियंत्रण जानबूझ कर खोती जा रही है। कंपनियां भी लूट की नयी-नयी तरकीबें  ईजाद करने में लग गई हैं क्योंकि उन्होंने जान लिया है कि यह सरकार उनकी असीम शक्ति के आगे पूरी तरह ‘कागज के शेर’ की भूमिका में आ गयी है।
    इस सरकार के मुखिया माननीय मनमोहन सिंह अंतरर्राष्ट्रीय मंचों से सोमालिया के समुद्री डकैतों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से एकजुट होने का आह्वान तो खूब करते हैं मगर क्या उन्हें पता नहीं कि उनके खुद के देश  में कैसी-कैसी डकैतियां हो रही हैं? अब सिम कार्ड प्रदाता कंपनियों की इस डकैती को ही लें तो पता चलेगा कि उनके आगे सोमालियाई डकैत तो पानी भरते नजर आयेंगे। समुद्री डकैतों को तो भारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है और आमने-सामने की लड़ाई में कभी-कभी वे जान से हाथ भी धो बैठते हैं। मगर ये कंपनियां तो लाखो-करोड़ों उपभोक्ताओं की कमाई को खुल्लमखुल्ला डकार लेने के बाद भी बेहद सम्मानित और अदृश्य स्थिति  में पड़ी रहती हैं। उन्हें डकैती डालने के लिए हमला बोलना नहीं पड़ता है बल्कि इस काम को अंजाम देने के लिए बस एक आसान से ‘क्लिक’ का सहारा लेना पड़ता है। सारा कंट्रोलिंग सिस्टम उनके लोगों के हाथ में होता है। उन्हें तो बस एक अदृश्य  ‘क्लिक’ के सहारे आपके बैलेंस में से एक खास रकम पर हाथ साफ कर लेना है और आपके बहुत हल्ला मचाने पर उनके गुर्गों से भारी विनम्रता के साथ हर बार बस यही सुनना है- ‘सर, फलां पैक के लिए आपने ही तो क्लिक किया था’। सोचिये, एक अदृश्य  क्लिक के सहारे एक दिन में ही अनगिनत उपभोक्ताओं को लूट लेने की डकैती यदि इस देश में बेरोकटोक जारी है तो यह मनमोहिनी बाजार व्यवस्था तो सोमालियाई समुद्री डकैतों के बापों के भी बाप है।
छुट्टियां खत्म होने के बाद मैं लौट तो आयी हूँ मगर मैं भी काफी उद्विग्न रहने लगी हूँ। पापा के तनाव, चिड़चिडेपन और बेबसी को देखकर मुझे भी डर सताने लगा है कि कहीं इस डकैती की शिकार मैं भी हो गयी तो क्या होगा? तब तो सीधे या तो मुझे या पापा को अपने मोबाइल से हाथ धो लेना पड़ेगा और बात करने से हम कई कई दिनों तक तरस जायेंगे। आखिर मेरे पापा एक वामपंथी कार्यकत्र्ता जो हैं जिनकी कमर इस दोहरी डकैती से टूटने से शायद ही बच पायेगी। और, यह शायद मैं ही नहीं, मेरी जैसी आर्थिक तंगी में जीने वाली अनगिनत बेटियां इसी उद्विग्नता में रह रही होगी?
                             
                                

7 comments:

  1. अच्छा लेख.....खासकर शब्दों का बेहतर चयन। हालाँकि कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही निजी सा लगता है।
    और शायद ये कम्पनी कहीं रिलायंस तो नहीं?

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  2. ahmm ahmmm...sme onez goin gr8...
    mere sath b ho chuka h ye...ab pta chala main itne numbers kyuu badlti hu...

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  3. बिलकुल ठीक समझा तुमने ...........ये कंपनी रिलायंस ही है........और जहाँ तक निजता की बात तुमने कही तो मुझे भी ये लिखते हुए लगा था कि यह थोडा निजी हो गया है... मगर मै इसे इस रूप में ही ज्यादा बेहतर तरीके से समझा सकती थी...

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  4. ह्ममम....खैर ये आपके विचार हैं इसलिए आपने जैसा बेहतर समझा, वैसे व्यक्त किये।

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  5. नहीं आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.. आपके सुझाव का हमेशा स्वागत है. लोंगो के सुझाव द्वारा ही मै अपनी लेखनी को और बेहतर बना सकती हूँ

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  6. well tried iti..... thanx for making us aware of the above problem and sharing your experience.

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