Jivan Bhar Chalte Rahe Kavivar Kanhaiya Ji
'जीवन भर चलते रहे 'कविवर कन्हैया जी '
"चलने दो विश्राम न लूँगा
'जीवन भर चलते रहे 'कविवर कन्हैया जी '
"चलने दो विश्राम न लूँगा
मैं पल भर भी पग में
शेष अभी साहस है मुझ में
गर्म लहू है रग में........."
कविवर कन्हैया जी
कविवर कन्हैया जी सचमुच आजीवन चलते ही रहे l अपना पूरा जीवन साहित्य साधना में गुजार दी l अपनी कलम को सशक्त कर शोषित पीड़ित जनता के संघर्षों को वाणी दिया l कभी किसानों की आवाज़ बनकर उभरे, कभी श्रमिकों की तो कभी युवाओं की आवाज़ बने l प्रगतिशील लेखक संघ एवं इप्टा को राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाने में अहम् भूमिका निभाई l जन आन्दोलनकारी के रूप में लाठी भी खाई और जेल यात्रा भी करनी पड़ी l
बचपन से ही मैं सुनती थी," मेरे दादा जी एक बहुत बड़े साहित्यकार, एक कवि है" l मगर उस वक़्त साहित्य जैसी चीज़े मेरे समझ से परे थी और कवि सिर्फ किताबों में पढने वाले कवि को समझती थी l मगर जब किताबों से बाहर आकर इन्हें जानने की कोशिश की तब पता चला कन्हैया जी किताबों के पन्नों से परे एक सशक्त, एक निर्भीक लेखनी के कवि हैl जो अपने प्रचार- प्रसार से काफी दूर रहते थे l शायद इसी कारण उनके जीवन काल में उनका एक भी कविता संकलन प्रकाशित नहीं हो सका l
प्रगतिशील परंपरा के लेखक कविवर कन्हैया जी सिर्फ साहित्यकार एवं कवि ही नहीं बल्कि अनुवादक और एक सशक्त संघठनकर्ता के रूप में भी जाने जाते है l विश्व विख्यात किताब "WHAT IS LIVING AND WHAT IS DEAD IN INDIAN PHILOSOPHY" ( प्रो देवी प्रसाद चटोपाध्याय) का हिंदी अनुवाद "भारतीय दर्शन में क्या मृत और क्या जीवित है " एवं प्रो डी एन झा की "ANCIENT INDIA" का हिंदी अनुवाद "प्राचीन भारत' इनके दो प्रमुख अनुवाद के रूप में जाना जाता है l साथ ही इन्होने कई अन्तराष्ट्रीय प्रतिरोधी कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद कर उनकी कविताओं को हिंदी पट्टी में प्रचारित प्रसारित किया l हो ची मिन्ह, पावलो नेरुदा,जेर्मन कवि ब्रेख्त, एवं कई फिलिपिनी कविताओं का इन्होने हिंदी में अनुवाद किया l
१९३५ में सज्जाद ज़ाहिर ने अपने साथियों के साथ मिलकर प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की थी l मगर कुछ कारणों से आगे चलकर यह निष्क्रिय हो गया था, उस वक़्त इसकी गरिमा को बनाये रखने के लिए कविवर कन्हैया जी ने इसे सक्रीय बनाने में अहम् भूमिका निभाई.इनमे एक सशक्त संघठनकर्ता की छवि समाहित थी, जिसने न सिर्फ प्रगतिशील संघ को सक्रीय बनाने में अपनी भूमिका निभाई बल्कि इप्टा को भी राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाया.कन्हैया जी इप्टा के उपसचिव भी रहे थे l
कलम के कर्मठ सिपाही कविवर कन्हैया जनांदोलन के योद्धा भी थे l १९६५ में कांग्रेसी कुशासन के जुल्मों का विरोध करने के कारण उन्हें जेलयात्रा भी करनी पड़ी l प्रेम चन्द्र रंगशाला को सी आर पी एफ से मुक्त कराने के लिए जुलुस का नेतृत्त्व करते हुए ११ सितम्बर १९८४ को वे बर्बर लाठीचार्ज के शिकार भी हुए l
१७ सितम्बर १९२३ में कृष्ण जन्माष्टमी को जन्म होने के कारण उनके धार्मिक माता पिता ने इनका नाम कन्हैया लाल रखा था l उनके पिता गोपीकृष्ण लाल छपरा में पेशकार थे l निम्न मध्य वर्ग परिवार में जन्म होने के कारण इनकी शिक्षा अधूरी रही l साहित्य में इनकी रूचि बचपन से ही थी l सन १९४० से कविता लिखना शुरु किया l उनकी पहली कविता कलकत्ता से प्रकाशित " विश्वमित्र" में १९४२ में प्रकाशित हुई थी l १९४४ में "सरस्वती" मासिक में "साधना" शीर्षक से उनकी एक कविता प्रकाशित हुई l कन्हैया जी गद्य और पद्य दोनों लिखते थे,किन्तु कवि के रूप में उन्हें अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई l हालाँकि उनके कुछ नाटक भी मशहूर हुए है l 'मेडेलिन' नाम से प्रकाशित नाटक की किताब काफी लोकप्रिय हुई थी, जिसपर नाटक का मंचन भी किया गया था l उन्होंने अपने जीवन काल अनेक पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया l 'यात्री','अगला कदम', 'अधिकार', 'हंसिया-हथौड़ा' 'नौजवान', 'पथ', 'शांति-मैत्री', आदि पत्रिकाओं का संपादन किया l आकाशवाणी से भी उनकी कविताओं का प्रसारण होता रहा है l जनशक्ति साप्ताहिक और दैनिक से वे लगातार जुड़े रहे l कविवर कन्हैया ने मुख्य रूप से गीत,मुक्तक और कविताएँ लिखी है. 'भटियाली' उनका अत्यंत लोकप्रिय गीत है l
"घहराती, बरसाती सरिता में
मछुए ने फेंका है महाजाल
पर्वत समतूल- तिमिर
वक्षस्थल पर स्वर्णिम
हस्ताक्षर अंकित कर
रहा जयी महाकाल l
पी जायेंगे अगस्त्य
अहंकार सिन्धु का
उभरेगा निश्चय
व्यक्तित्व दमित बिंदु का
सूरज की एक-एक
प्रखर किरण वंशी में
पानाली तिमिरमत्स्य
फंसे चले जाते हैं
मस्ती में मर्दाने नाविक सब
हइयो हो, हइयो हो
भटियाली गाते है.l "
कविवर कन्हैया या जनकवि कन्हैया के नाम से लोकप्रिय कन्हैया जी सादगी एवं सृह्दयता के प्रतिमूर्ति थेl मृदुभाषी, विनम्र तथा स्वभाव से मिलनसार कन्हैया जी पहली मुलाकात में ही किसी को अपने से बांध लेते थे l उन्होंने लगभग चार दशकों तक प्रगतिशील साहित्य और जन संघर्षों में अपना उलेखनीय योगदान दिया l उनका व्यक्तित्व एक कवि एक कम्युनिस्ट के रूप में सदा अनुकरणीय रहेगा l
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ReplyDeleteYE HUMARA SAUBHAGAYA HAI K ITNI BADI HASTI KI PAUTI HUMARE DOST HAI...AUR AISE MAHAAN LOG HUM SABHI K LIYE EK UCHIT MARG DARSHAN HAI...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत लेख......उनको मेरा नमन। और आप भी बधाई की पात्र हैं, जो ये जानकारी हमसे साझा की।
ReplyDeleteIs Sunder Lekh ke liye tumhe mubarakbaad.Sadaiv woh prerna ke shrot then aur rahenge.
ReplyDeleteGeetika Sharan
thank u bua..........mere liye dada ji hamesha prena ke sroth rahenge.....
ReplyDeleteHello Iti...
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Salaam to this great personality
मैं कन्हैया जी से कभी नहीं मिला। लेकिन 1977-78 से ही कन्हैया जी का नाम सुनता आया हूँ। उनकी तस्वीरें भी देखी हैं। इनके पुत्र सुमन्त जी से भी शायद दिल्ली में मुलाक़ात हुई है। आज आपका यह लेख पढ़कर उनके बारे में काफ़ी जानकारी हुई। बेहद आभारी हूँ। क्या इण्टरनेट वेबसाइट कविता कोश के लिए उनकी कुछ कविताएँ उपलब्ध करा पाएँगी आप। आपने अपने संस्मरण में उनके एकमात्र कविता-संग्रह ’गुलाब का फूल और बन्दी जीवन के बारे में भी कुछ नहीं लिखा। कुछ लिखतीं तो अच्छा होता।
ReplyDeleteनमस्ते अनिल जी। माफ कीजिएगा आपका मैसेज आज देखें। दादा जी यानी कविवर कन्हैया की कविताएं कविता कोश के लिए क्या अभी भी भेजी जा सकती है ?
Deleteआपके एक चचेरे दादा जी सांवलिया बाबू के विद्यालय में ही मेरे पिताजी भी शिक्षक थे। इप्टा की एक शाखा(सुतिहार) का सचिव था और कन्हैयाजी की जयंती हम लोगों ने लगातार 25 वर्षों तक वृहत रूप से मनाई है। अब नयी पौध इस परम्परा को आगे ले जाने में सक्षम नहीं लगते फिर भी जारी है। आज एक बहस आयोजित है स्त्री सुरक्षा पर ऐसी सूचना है। आपका आलेख fb पर डाल रहा हूँ।
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