Friday, December 23, 2011

नन्ही गौरैया

नन्ही गौरैया 
आसमान में उड़ते परिंदों को देख कर किसका मन उनकी तरह उड़ने का नहीं करता l हर परेशानियों से दूर स्वछंद और निर्भीक  उडान  l "कितनी अच्छी है उनकी जिंदगी" यही बाते शायद सबके मन में उठती होंगी  l पर कभी हमने उन्हें करीब से जानने की कोशिश नहीं की , उनका जीवन कितना संघर्षमय है  l मैं आपको अपने जीवन में घटित एक घटना से अवगत करना चाहती हूँ  l
 ये थोड़ी पुरानी बात है  क्योंकि आजकल यह दृश तो दुर्लभ ही लगता है l मेरे घर में गौरैया का घोसला था  l  जिसमे एक  गौरैया अपने दो बच्चों के साथ रहती थी l रोज़ उनकी चहलकदमी और फुदकना मन को मोह लेता था  l मादा गौरैया रोज़ सुबह अपने बच्चों के लिए खाने की खोज में निकल जाती और शाम में जब अपने घोसले में आती तब उसके बच्चे उत्सुकता से अपनी माँ के सामने निवाले का इंतजार करते और मादा गौरैया भी उन्हें खिलाकर तृप्त होती थी  l इन्सान हो या पक्षी माँ की ममता सर्वोपरि होती है  l हर दिन की तरह मादा आज भी भोजन की तलाश में निकल गई l कुछ देर बाद मेरी नज़र निचे गिरी नन्ही गौरैया पर पड़ी, जो शायद  खेलते हुए गिर गयी थी  l वो इतनी छोटी थी कि शायद उसने उड़ना भी नहीं सिखा था  l लगातार कोशिश के बावजूद वो अपने नीड़ में जाने में नाकायाम ही रही  l  सोचा उसे घोसले में रख दूँ  l मगर घोसला इतना ऊपर था कि मैं  भी उसमे नाकामयाब रही घर पर भी कोई और नहीं था  l मैं उसे एक टोकड़ी से ढककर रख दी  l सोचा शाम में जब मादा गौरैया वापस आएगी तो वो उसे ले जाएगी  l शाम को गौरैया वापस आने पर अपने बच्चे को अधीरता से ढुंढने लगी  l मैंने उसकी आवाज़ सुनकर टोकड़ी हटा दी और वह अपने बच्चे को लेकर नीड़ में चली गयी  l उस वक़्त शायद वह सबसे खुश थी  l  मगर अगले ही दिन नन्ही गौरैया फिर से गिर गयी  l इस बार तो शायद  उसका पैर भी टूट गया था  l उसके कुंदन ने मेरे मन को आघात कर दिया.मैं उसके लिए जो कर सकती थी वो की और उसकी माँ का इंतजार करने लगी  l कुछ क्षण के लिए मैं कमरे में गयी तभी अचानक मैंने उस गौरैया की चीख सुनी मैं जब तक वहां आती एक कौआ उस गौरैया को अपने दांतों में दबा कर उड़ गया  l मैं कुछ नहीं कर सकी  l इस घटना ने मुझे इस बात का अहसास दिला दिया की उस नन्ही गौरैया से लाचार तो मैं थी, जो उसकी रक्षा भी नहीं कर सकी l शाम में मादा गौरैया वापस लौटकर व्याकुलता से अपने बच्चे को ढूंढने लगी l मगर उसकी यह तलाश तब पूरी होती जब नन्ही गौरैया वहां होती l अपने बच्चे को ढूंढने में नाकामयाब गौरैया अंत ने मायूस होकर अपने दूसरे बच्चो के पास घोसले में वापस चली गयी  l मैं यह सब स्तब्ध होकर देख रही थी और अगले दिन वही दिनचर्या शुरू हुई उस नन्ही  गौरैया का  l दुःख तो उसके मन में भी था पर अपने दूसरे बच्चों के प्रति उसका यह कर्तव्य था  l
इस घटना के बाद मेरा जीवन ही बदल गया  l हमेशा इस सोच में जीती थी कि कितना आनदमय है इनका जीवन  ,पर कभी सोचा नहीं था इस आनंद के पीछे इतना बड़ा दुःख भी छिपा हो सकता है  l वह बेजुबान पक्षी तो अपना दुःख बता भी नहीं सकते  l उस नील गगन में वो आनंद के लिए नहीं उड़ते, हर रोज़ एक नई तलाश पर निकलते है. हर रोज़ एक संघर्ष फिर भी हमेशा चहकते फुदकते अपना जीवन बिताते है  l हम इन्सान जिसकी शारीरिक संरचना ऐसी होती है जिससे हम ठीक से कठिन काम कर सकते है फिर भी उन पक्षियों के सामने असहाय सा महसूस करते है, कि हम उनकी तरह नील गगन में उड़ नहीं सकते  l
मुझे इस बात का दुःख अबतक है कि मैं उस गौरैया के लिए कुछ न कर सकी  l मगर अब यह अहसास भी हो गया कि हम छोटी छोटी बातों लो लेकर युहीं खुद को असहाय समझने लगते है ,असहाय तो वह पक्षी है जो हमारे कारण आज विलुप्त होते जा रहे हैं l हमें तो उनके लिए कुछ करना चाहिए l यूँही उनका नीड़ ध्वस्त करना यह अमानवीय व्यवहार हमें छोड़ना पड़ेगा  l इन पक्षियों को उड़ते देख आनंद के साथ हमारे अन्दर एक ललक भी जगती है तो आज उनके लिए ना सही अपने लिए ही आगे बढ इनके संरक्षण में अपना योगदान दें l

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