Monday, September 5, 2011

11 दिन का अनशन बड़ा या 11 वर्षों का


                  11 दिन का अनशन बड़ा या 11 वर्षों का??????
अगस्त के महीने में दिवाली, होली मनने लगी l देश भर में आज़ादी के दूसरे उत्सव जैसा माहौल बन गया l वाकिया अन्ना के जीत का था l दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर- प्रदेश सभी जगह एक ही आवाज़ गूंज रही थी "अन्ना हजारे" l पूरा देश आना के रंग में रंग चुका है l  कोई अन्ना में अपना पिता देख रहा है तो किसी ने तो उन्हें भगवान तक का दर्ज़ा ही  दे दिया l लम्बे समय से भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता  के लिए लोकपाल बिल के समर्थक के रूप में अन्ना जैसी सख्सियत का उभरकर आना उनके लिए किसी महापुरुष के अवतार लेने से कम नहीं था l लम्बे समय से लगातार 8 बार संसद सत्र में इस बिल पर कोई अहम् फैसला नहीं होने पर अन्ना का यह  आन्दोलन अँधेरे में प्रकाश की तरह साबित हुआ l भले ही जनता लोकपाल बिल से परिचित हो या नहीं मगर अन्ना के साथ चलने को तैयार हो गयी l
इस दौरान सफ़ेद धोती, कुर्ता और टोपी पहने यह साधारण सा दिखने वाला सख्स देश का असली हीरो बन गया l इसकी बढती लोकप्रियता ने सरकार के भी कान खड़े कर दिए और अंतत सरकार को इस सख्सियत  के आगे झुकना ही पड़ा l मगर एक बात गंभीरता से लेने की जरुरत है l  अन्ना के पहले क्या किसी ने देश के कल्याणकारी मुद्दों पर आवाज़ नहीं उठाई  l  इरोम शर्मीला, मेधा पाठकर, स्वामी  निग्मानद जैसे कई लोगो ने कुछ ऐसे मुद्दों पर अनशन किया जो समाज के लिए विनाशकारी साबित हो सकते है  l  इरोम शर्मीला के अनशन को आज ११ वर्ष होने को है l मगर देश की कितनी जनता उन्हें या उनके अनशन से परिचित है? खासकर वह युवा वर्ग जिन्हें अन्ना को समर्थन देने पर एक जागरूक युवा के दर्जे से नवाज़ा जा रहा है l  उनतक इस अनशन की कितनी खबर पहुँचती है l  जहा एक ओर अन्ना के अनशन के पहले से ही पुरे देश में अन्ना नाम के नारे लगने लगते है,अनशन के दौरान उनकी सेहत के हर पल की खबर लोगो को पहुंचाई जाने लगती है l  वही दूसरी तरफ इरोम के अनशन के 11 वर्षों बाद भी इसपर कोई अहम् फैसला नहीं हो किया जा सका है. l स्वामी निग्मानंदन की मृत्यु के बाद देश के लोगो ने उनके बारे में जाना l इनके अनशन से सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती  l मगर अन्ना के अनशन ने तो उनकी रातों की नींद ही उड़ा डाली l  आख़िरकार अन्ना को मिले मीडिया और लोगो के समर्थन ने सीधे उनकी कुर्सी पर जो हमला किया है l
वर्ष 1958 से पूर्वोतर के सात राज्यों में लागू सशस्त्र बल विशेसाधिकार अधिनियम के खिलाफ मणिपुर की इरोम शर्मीला वर्ष 2000 से भूख हड़ताल पर है l  फिर भी सरकार इस ओर कोई गंभीर कदम उठाने से हमेशा पीछे रही है और इसे नज़रंदाज़ करती रही है l  तब से राज्य में 20,000 से अधिक लोग लापता हो चुके है l  इस एक्ट के अंतर्गत सेना को असीमित अधिकार प्रदान किये गए है "बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लेना , किसी भी परिसर में बगैर किसी औपचारिकता के तलाशी  लेना, पाँच से ज्यादा लोगो के एक साथ जमा होने पर रोक, बगैर किसी प्रशासनिक अनुमति के किसी पर गोली चलाने, बल प्रयोग करने यहाँ तक कि मार डालने तक का अधिकार है l " यह एक्ट उत्तरपूर्व के कई राज्यों खासकर मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा आदि में उत्पीडन, हत्या, भेदभाव एवं बड़े पैमाने पर हिंसा का प्रतीक बन चुका है l  यहाँ तक कि जम्मू कश्मीर में भी यह जनविरोधी एक्ट 1990 से लागू कर दिया गया है l 
इन सबके बीच इरोम शर्मीला इस कानून की चपेट में आ रहे परिवार के लिए आशा बन कर आई l  मगर सरकार ने इनकी मांग मानने के बदले उन्हें कई बार जेल की चार दिवारी में डाल दिया l  सालों से उन्हें जबरन नाक के जरिये तरल पदार्थ दिया जा रहा है l हांलाकि सरकार ने 2004  "जीवन रेड्डी आयोग" का गठन किया l जिसमे आर्म्ड फ़ोर्स एक्ट को रद्द करने की मांग कि गयी l  इसके बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने अबतक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है l बल्कि लगातार हो रही बेकसूरों की मौत इस ओर सरकार की निरस्तता को साफ दर्शाती है. 
देश में ज्यादातर लोगो के अनशन के आन्दोलन दब कर रह जाते है l  ना ही वह युवाओं की आवाज़ बनता है और ना ही इतना बड़ा जन आन्दोलन का रूप ले पाता है l सरकार तक इनकी बात पहुँचाने के लिए शायद एक और बड़े जन आन्दोलन की जरुरत है l  यह तभी संभव है जब मीडिया यहाँ भी वही भूमिका निभाए जैसा अन्ना के अनशन के दौरान निभाया था और एक बड़े जन समूह खासकर युवा वर्ग को एकत्र करे l 

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