Saturday, August 13, 2011

हंगामे की भेंट चढ़ता संसद सत्र

                              हंगामे की भेंट चढ़ता संसद सत्र
मौनसून सत्र की शुरुआत  से ही सरकार पर हो रहे चौतरफा वार और विपक्ष के तेवर को देखते हुए आसार यहीं दिख रहे है कि इसका भी वही हश्र न हो जो  पिछले शीतकालीन  सत्र का हुआ  था l  महज एक मुद्दा '2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जाँच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाई जानी चाहिए या नहीं' पर पूरा सत्र हंगामे की भेट चढ़ गया l  पूरे सत्र के दौरान लोकसभा में सिर्फ एक दिन और राज्य सभा में कुल 2 घंटे 44मिनट ही कम हो सका  l हाँलाकि सत्र की बली चढ़ना कोई नई बात नहीं है l साल 2008 को जब भारत अमेरिकी परमाणु करार के कारण संसद में तूफान खड़ा हो गया था  l उस साल सरकार ने महज़ 45 दिन ही संसद की बैठक बुलाई थी. 
बहरहाल मौनसून  सत्र हो या फिर शीतकालीन सत्र सरकार पर आरोपों की बौछार होना तो निश्चित ही है l विपक्ष भी इस मौके को गवाना नहीं चाहता l सत्र की शुरुआत से ही सरकार पर हो रहे चौतरफा वार को इसके परिणाम के रूप में देखा जा सकता है l 2 जी स्पेक्ट्रम विवाद के पहले से ही घिरी सरकार को कॉमनवेल्थ गेम्स, महंगाई, लोकपाल बिल, भूमि अधिग्रहण बिल आदि मुद्दों पर कड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है l कॉमनवेल्थ गेम्स से सम्बंधित कैग के खुलासे को लेकर विपक्ष दल ने शीला दीक्षित पर तो हमला बोला ही प्रधानमन्त्री कार्यालय को भी इसके कटघरे में खड़ा करने में नहीं चुके l जहाँ सरकार स्वयं के बचाव में बयानबाज़ी में लगी है वहीं विपक्ष सरकार की आलोचना में l  जाहिर सी बात है जब दो आवाजें अलग -अलग दिशाओं में उठेगी तो मतभेद और हंगामा होना तो लाज़मी है l  उन हंगामों के बीच किसी मुद्दे पर शांतिपूर्ण वार्ता अँधेरे में तीर मारने जैसी बात होगी l हाँलाकि महंगाई के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष साथ साथ दिखाई पड़े l महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दे पर विपक्ष और सरकार के बीच चली तना -तनी के बाद कुछ आपसी सहमती देखने को तो मिली l मगर यह समझौता भी महंगाई पर काबू पाने में लगभग असमर्थ ही रहा l बल्कि महंगाई की बोझ आम जनता पर पड़ने के संकेत दिए जा रहे हैं l खाद्य पदार्थो के मूल्य में वृद्धि की आशंका भविष्य में महंगाई दर में और भी अधिक वृद्धि कर सकती है l खाद्य पदार्थो  के साथ ही आम जन जीवन की मूल्यों में भी उछाल आने की संभावना झलक रही है l पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की स्थाई समिति ने 6 लाख से ऊपर  सालाना आमदनी वालो के लिए एलपीजी सिलिंडर पर सब्सिडी ख़त्म करने की सिफारिश करके सीधे आम लोंगो की रसोई पर हमला किया है l वर्त्तमान में एक सिलिंडर की कीमत 399 रूपए है जिसपर सरकार 245 रूपए की सब्सिडी देती है l प्रस्ताव के पास होने पर प्रति सिलिंडर 646 रूपए का पड़ेगा l साथ ही लग्ज़री कार के लिए डीज़ल और पेट्रोल में मिलने वाली सब्सिडी भी ख़त्म करने पर विचार किया जा रहा है l  रेलयात्रियों की भी जेब ढीली होने की आशंका साफ़ दिखाई पड़ रही है l यात्री किराये में 10 प्रतिशत तक का इजाफा किया जाना है l हाँलाकि इस प्रस्ताव में सिर्फ एसी श्रेणी के किराये में वृद्धि करने की बात कही गयी है l मामला पूरा साफ है, जमीनी हकीकत यहीं बयाँ करती है कि महंगाई पर काबू पाने में असमर्थ सरकार जनता के चूल्हे की आग बुझाने और उनकी जेब ढीली करने में लगी है l केंद्र सरकार बीपीएल परिवारों को मिट्टी के तेल के बजाये सीधे सब्सिडी देने की योजना बनाने जा रही है l अब जहाँ पहले से ही भ्रष्टाचार के दर्जनों मुद्दे मौजूद हैं l वहां इस बात की कल्पना ही की जा सकती है कि बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सब्सिडी का कितना प्रतिशत उन तक पहुँच पाता  है l महंगाई के संबध में सरकार और राजग कि मिलीभगत और उनकी सोच के कारण इस मुद्दे पर भी  वे राजनीती करने से बाज़ नहीं आते l सरकार और मुख्य विपक्षी गठबंधन राजग में बनी सहमती के विरोध में कम्युनिस्ट पार्टी ने 'मत विभाजन' का प्रस्ताव रखा l मगर दोनों कि मिलीभगत का परिणाम यह हुआ कि राजग के सहयोग से सत्ता दल ने प्रस्ताव को 51 के मुकाबले 320 मतों से खारिज कर दिया  l भ्रष्टाचार और महंगाई के समर्थक सरकार और राजग कि किसी और  मुद्दे पर आवाज साथ हो या नहीं मगर आम जनता को चुसने में वे दोनों एक साथ आगे रहते है l इसके विपरीत जहाँ दोनों के उद्देश्य मेल नहीं खाते वहां मुख्य  विपक्षी गठबंधन राजग सरकार के विरोध में सबसे आगे खड़ा  होता  है l अब कॉमनवेल्थ विवाद को ही देखिये l कैग ने जब खेल आयोजन सम्बन्धी धांधली में सुरेश कलमाड़ी के साथ ही शीला दीक्षित और प्रधानमंत्री कार्यालय को कटघरे में खड़ा किया तब राजग को सरकार पर हमला बोलने का एक और हथियार मिल गया  जिसे राजग ने बखूबी इस्तमाल भी किया l कैग की ताज़ा  रिपोर्ट के अनुसार खेलों के आयोजन के दौरान बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुँचाने  के लिए चीजों को ज्यादा  मूल्यों में खरीदा गया l साथ ही साठ करोड़ रूपए के बजट में तीन गुना इजाफे के बावजूद भी आयोजन के दौरान शुरू  किये सभी कार्यों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है l अब राजग इसे आड़े हाथ ले रहा है l वहीं कांग्रेस कैग द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय और शीला दीक्षित को दोषी ठहराने की बात को सिरे से खारिज कर रही है l इस गहमा-गहमी में संसद एक बार फिर दावं पर लगा और सत्र ठप रहा l लम्बे समय से लोकपाल बिल पर चल रहे तमाम अटकलों के बीच संसद में बिल प्रस्तुत किया गया तो वहां भी आलोचनाओं की आंधी चली l रक्षात्मक बयान देते हुए केंद्र सरकार ने जनता से अपने वादे पुरे करने की तो बात कह डाली l मगर अन्ना समर्थकों ने मौजूदा विधेयक के  प्रारूप को भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कमजोर और निरस्त मानते हुए  इसकी जमकर आलोचना की  l अन्य सत्र  कि तरह मौनसून सत्र भी वाद-विवाद , आरोप-प्रत्यारोप  कि भेंट चढ़ रहा है l संसद सत्र में होने वाले गहमा-गहमी और अन्य बहसों में कुछ मूलभूत समस्याएँ  हाशियें पर चढ़ जातें है l एक आम आदमी को अपने प्रतिनिधिओं से जो अपेक्षाएं होती हैं l वे लगभग धरी की धरी ही रह जाती है l देश के चर्चित मुद्दें केवल आरोप-प्रत्यारोप तक हीं सीमित रह जाते है l उनका न तो कोई हल नज़र आता है और न ही कोई सांसद  इन मुद्दों को लेकर गंभीर नज़र आते हैं l  ऐसे में जनता की आवाज सांसदों के सर तले दब कर रह जाती है l 

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