नितीश का सम्मान या बिहार का अपमान
हाल ही में नितीश कुमार को CNNIBN "INDIAN OF THE YEAR" 2010 घोषित किया गया. उन्हें राजनीति में सबसे सर्वश्रेठ भारतीय के पुरस्कार से नवाज़ा गया है. बिहार की सियासी कुर्सी पर अपनी पैठ बनाये रखने में कामयाब नितीश कुमार ने राजनीती में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है . राजनीति गलियारों में नितीश की इस उपलब्धि की चर्चा बनी हुई है. CNNIBN से मिला यह सम्मान नितीश जी के साथ-साथ पुरे बिहार के लिए सम्मान और गर्वपूर्ण है.
परन्तु क्या इस सम्मान को बिहारवासियो के साथ अन्य राज्यों में हो रहे अपमान से ज्यादा तवज्जो दी जा सकती है . राजधानी दिल्ली में भी बिहारवासियो पर प्रहार किया जाता है. और हद तो तब हो गईं जब चिदंबरम ने उत्तरभारतीओं को अपने ही देश में प्रवासी कहकर उनपर करा प्रहार किया. शिक्षा को पैसो का मोहताज करके लोंगो तक इसकी पहुँच सिमित करने की साजिश तो रची जा ही चुकी है , अब इसे राज्य की सीमा में बांध कर लोंगो की पहुच से वंचित करने की साजिश रची जा रही है. बिहारियों के साथ हो रहे इस खेलवार के लिय्रे अन्य राज्यों के नेताओं से ज्यादा जिम्मेदार बिहार सरकार है. जब खुद घर में खाना नहीं मिलता है तब आपको मजबूरन बाहर खाना पड़ता है. ठीक उसी प्रकार बिहारियों को अपने घर यानि बिहार में ऊंच्च शिक्षा के नाम पर सिर्फ ढोंग, मिथ्या का सामना करना पड़ता है. अलबता बिहारियों को अपने उज्जवल भविष्य की कमाना हेतु बाहर के रस्ते चुनने पड़ते हैं.
ऐसा कहना भी पूर्ण रूप से गलत होगा की यहाँ उच्च शिक्षा उपलब्ध नहीं है. सरकारी से लेकर निजी संस्थानों ने नए -नए विषयों की पढाई की होर लगा रखीं है. मेडिकल ,इनजीनियर .पत्रकारिता ,जैसे विषयो की पढाई के केन्द्रों का जाल सा बिछा हुआ है. परन्तु इन केन्द्रों का आकर्षण सिर्फ बाहरी रूप रेखा है. बेहतरीन फैकल्टी , आधारभूत सुविधाएँ की कमी छात्रों के पलायन का कारण बन जाती है. निजी संस्थाएं शिक्षा के नाम पर रुपयों का बण्डल तो वसूल लेती हैं परन्तु इनकी असलियत से छात्र जब रूबरू होते हैं ,तो वह अपने अप को ठगा सा महसूस करते हैं. उन्हें शिक्षा के नाम पर सिर्फ ढोंग ,मिथ्या मिलती है .अंततः उनके हांथो सिर्फ निराशा ही लगती है.
बिहार सरकार पलायन को रोकने के लिए जो भी रोजगार सम्बन्धी कार्यक्रम चलाये हैं ( जैसे नरेगा ) वह भी इस पलायन को रोक पाने में असमर्थ साबित हुई हैं .हालाँकि सरकार का मानना है की वह इन कार्यक्रमों के ज़रिये पलायन के प्रतिशत में कमी लायी है. परन्तु इसकी असफलता का सबसे बड़ा उदाहरण महानगरों और बड़े -बड़े शहरों की ओर जाने वाली ट्रेनों की खसाखस भीड़ हैं. ट्रेनों में इजाफा के साथ -साथ लोंगो में भी इजाफा हो रहा हैं .निचले तबके से लेकर ऊंच्च तबके के लोंगो का ट्रेनों में जमावड़ा देखने को मिल जाता हैं .जो इस बात का एक अच्छा उदहारण है की बिहार से आज भी बड़ी मात्रा में महानगरों ओर बड़े शहरों में पलायन जारी है . संभवत पलायकों के प्रतिशत में इजाफा होने की उम्मीद दिखाई देती है .
जिस बिहार में किसी ज़माने में नालंदा जैसे विश्व प्रसिद्य विश्वविद्यालय हुआ करते थे आज उसी बिहार के निवासी शिक्षा के लिए दुसरे राज्य के मोहताज बन कर रह गए हैं.नितीश सरकार से बस यहीं गुज़ारिश हैं की वह अपने सम्मान के साथ-साथ बिहार को भी सम्मान दिलवाने का प्रयास करें.
हाल ही में नितीश कुमार को CNNIBN "INDIAN OF THE YEAR" 2010 घोषित किया गया. उन्हें राजनीति में सबसे सर्वश्रेठ भारतीय के पुरस्कार से नवाज़ा गया है. बिहार की सियासी कुर्सी पर अपनी पैठ बनाये रखने में कामयाब नितीश कुमार ने राजनीती में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है . राजनीति गलियारों में नितीश की इस उपलब्धि की चर्चा बनी हुई है. CNNIBN से मिला यह सम्मान नितीश जी के साथ-साथ पुरे बिहार के लिए सम्मान और गर्वपूर्ण है.
परन्तु क्या इस सम्मान को बिहारवासियो के साथ अन्य राज्यों में हो रहे अपमान से ज्यादा तवज्जो दी जा सकती है . राजधानी दिल्ली में भी बिहारवासियो पर प्रहार किया जाता है. और हद तो तब हो गईं जब चिदंबरम ने उत्तरभारतीओं को अपने ही देश में प्रवासी कहकर उनपर करा प्रहार किया. शिक्षा को पैसो का मोहताज करके लोंगो तक इसकी पहुँच सिमित करने की साजिश तो रची जा ही चुकी है , अब इसे राज्य की सीमा में बांध कर लोंगो की पहुच से वंचित करने की साजिश रची जा रही है. बिहारियों के साथ हो रहे इस खेलवार के लिय्रे अन्य राज्यों के नेताओं से ज्यादा जिम्मेदार बिहार सरकार है. जब खुद घर में खाना नहीं मिलता है तब आपको मजबूरन बाहर खाना पड़ता है. ठीक उसी प्रकार बिहारियों को अपने घर यानि बिहार में ऊंच्च शिक्षा के नाम पर सिर्फ ढोंग, मिथ्या का सामना करना पड़ता है. अलबता बिहारियों को अपने उज्जवल भविष्य की कमाना हेतु बाहर के रस्ते चुनने पड़ते हैं.
ऐसा कहना भी पूर्ण रूप से गलत होगा की यहाँ उच्च शिक्षा उपलब्ध नहीं है. सरकारी से लेकर निजी संस्थानों ने नए -नए विषयों की पढाई की होर लगा रखीं है. मेडिकल ,इनजीनियर .पत्रकारिता ,जैसे विषयो की पढाई के केन्द्रों का जाल सा बिछा हुआ है. परन्तु इन केन्द्रों का आकर्षण सिर्फ बाहरी रूप रेखा है. बेहतरीन फैकल्टी , आधारभूत सुविधाएँ की कमी छात्रों के पलायन का कारण बन जाती है. निजी संस्थाएं शिक्षा के नाम पर रुपयों का बण्डल तो वसूल लेती हैं परन्तु इनकी असलियत से छात्र जब रूबरू होते हैं ,तो वह अपने अप को ठगा सा महसूस करते हैं. उन्हें शिक्षा के नाम पर सिर्फ ढोंग ,मिथ्या मिलती है .अंततः उनके हांथो सिर्फ निराशा ही लगती है.
बिहार सरकार पलायन को रोकने के लिए जो भी रोजगार सम्बन्धी कार्यक्रम चलाये हैं ( जैसे नरेगा ) वह भी इस पलायन को रोक पाने में असमर्थ साबित हुई हैं .हालाँकि सरकार का मानना है की वह इन कार्यक्रमों के ज़रिये पलायन के प्रतिशत में कमी लायी है. परन्तु इसकी असफलता का सबसे बड़ा उदाहरण महानगरों और बड़े -बड़े शहरों की ओर जाने वाली ट्रेनों की खसाखस भीड़ हैं. ट्रेनों में इजाफा के साथ -साथ लोंगो में भी इजाफा हो रहा हैं .निचले तबके से लेकर ऊंच्च तबके के लोंगो का ट्रेनों में जमावड़ा देखने को मिल जाता हैं .जो इस बात का एक अच्छा उदहारण है की बिहार से आज भी बड़ी मात्रा में महानगरों ओर बड़े शहरों में पलायन जारी है . संभवत पलायकों के प्रतिशत में इजाफा होने की उम्मीद दिखाई देती है .
जिस बिहार में किसी ज़माने में नालंदा जैसे विश्व प्रसिद्य विश्वविद्यालय हुआ करते थे आज उसी बिहार के निवासी शिक्षा के लिए दुसरे राज्य के मोहताज बन कर रह गए हैं.नितीश सरकार से बस यहीं गुज़ारिश हैं की वह अपने सम्मान के साथ-साथ बिहार को भी सम्मान दिलवाने का प्रयास करें.
I wish this blog reaches the prime minister..and to all those politicians who are playing with the future of BIHAR!! plz stop the politics nd be a part to join hands to mke our state an INDIAN STATE!!
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